Boom Live

Trending Searches

    Boom Live

    Trending News

      • फैक्ट चेक
      • एक्सप्लेनर्स
      • फास्ट चेक
      • अंतर्राष्ट्रीय
      • वेब स्टोरीज़
      • राजनीति
      • वीडियो
      • Home-icon
        Home
      • Authors-icon
        Authors
      • Careers-icon
        Careers
      • फैक्ट चेक-icon
        फैक्ट चेक
      • एक्सप्लेनर्स-icon
        एक्सप्लेनर्स
      • फास्ट चेक-icon
        फास्ट चेक
      • अंतर्राष्ट्रीय-icon
        अंतर्राष्ट्रीय
      • वेब स्टोरीज़-icon
        वेब स्टोरीज़
      • राजनीति-icon
        राजनीति
      • वीडियो-icon
        वीडियो
      Trending Tags
      TRENDING
      • #Operation Sindoor
      • #Narendra Modi
      • #Pahalgam Terrorist Attack
      • #Rahul Gandhi
      • #Waqf Amendment Act 2025
      • Home
      • एक्सप्लेनर्स
      • कोलकाता केस में पॉलीग्राफ टेस्ट को...
      एक्सप्लेनर्स

      कोलकाता केस में पॉलीग्राफ टेस्ट को लीगल एक्सपर्ट ने बताया गैर जरूरी

      पॉलीग्राफ टेस्ट की सटीकता और कोर्ट में इसे सबूत के रूप में पेश किए जाने को लेकर हमेशा सवाल उठते आए हैं.

      By - Shefali Srivastava |
      Published -  29 Aug 2024 12:22 PM IST
    • Listen to this Article
      Explainer on Polygraph test

      कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर के रेप-मर्डर केस में सीबीआई ने रविवार को मुख्य आरोपी संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्ट किया. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, टेस्ट के दौरान आरोपी ने खुद को बेकसूर बताया और कहा कि घटनास्थल पर पहुंचने से पहले ही पीड़िता की मौत हो चुकी थी. संजय रॉय पर यह परीक्षण कोलकाता कि प्रेजिडेंसी सेंट्रल जेल में किया गया.

      वहीं सीबीआई ने इससे पहले मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष का भी पॉलीग्राफ टेस्ट किया. सीबीआई इस टेस्ट के जरिए वारदात के महत्वपूर्ण सबूत इकट्ठा कर रही है और इससे जुड़ी घटनाओं के तार जोड़ने का काम कर रही है. इसी के साथ यह लाई डिटेक्टर टेस्ट फिर से सुर्खियों में है जिसकी सटीकता हमेशा से सवालों के घेरे में रही है.


      शारीरिक प्रतिक्रियाओं पर आधारित है पॉलीग्राफ

      पॉलीग्राफ टेस्ट एक लाई डिटेक्टर यानी झूठ का पता लगाने वाला टेस्ट होता है. यह सवालों का जवाब देते समय शारीरिक क्रियाओं में बदलाव जैसे पल्स रेट,ब्लड प्रेशर, हृदय गति और सांसों के उतार-चढ़ाव से संबधित होता है. भारत समेत दुनियाभर में जांच एजेंसियां किसी मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए इस परीक्षण का सहारा लेती हैं. हालांकि इसके परिणाम भारतीय अदालतों निर्णायक सबूत के रूप में स्वीकार्य नहीं होते हैं.

      पॉलीग्राफ टेस्ट इस धारणा पर आधारित है कि अगर कोई व्यक्ति झूठ बोलता है तो उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएं बदल जाती हैं, जैसे हृदय की धड़कन में अंतर, सांसों में उतार-चढ़ाव और पसीना आना वगैरह.

      इसके लिए कार्डियो कफ या सेंसिटिव इलेक्ट्रोड जैसे उपकरण को आरोपी के शरीर से अटैच किया जाता है. इस प्रक्रिया में व्यक्ति से सवाल पूछने के दौरान ब्लड प्रेशर, पल्स, रक्त का प्रवाह वगैरह की माप की जाती है.

      प्रत्येक प्रतिक्रिया को एक संख्यात्मक मान दिया जाता है ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ या फिर अनिश्चित है.


      पॉलीग्राफ टेस्ट नतीजे 100 फीसदी सटीक नहीं

      अब तक पॉलीग्राफ टेस्ट नतीजे वैज्ञानिक रूप से 100 फीसदी सफल साबित नहीं हुए हैं. साथ ही चिकित्सा क्षेत्र में भी ये विवादास्पद बने हुए हैं. लाई डिटेक्टर टेस्ट शारीरिक प्रतिक्रियाओं पर आधारित है इसलिए यह भी संभव है कि अगर आरोपी अपनी भावनाएं और शारीरिक परिवर्तनों को कंट्रोल करने में सक्षम कर ले तो इसके नतीजे प्रभावित हो सकते हैं.

      इसके अलावा ब्लड प्रेशर, सांसें और दिल की धड़कन बढ़ने जैसे शारीरिक प्रतिक्रियाएं घबराहट, डर या स्ट्रेस जैसे फैक्टर के कारण भी प्रभावित हो सकती हैं.

      अमेरिकन साइकोलॉजिकल असोसिएशन (APA) की 2004 की स्टडी के मुताबिक, पॉलीग्राफ टेस्ट की सटीकता लंबे समय से विवादास्पद रही है. झूठ बोलने को किसी विशेष शारीरिक प्रतिक्रिया से पकड़े जाने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. स्टडी के अनुसार, एक ईमानदार व्यक्ति को सच्चाई से जवाब देते समय घबराहट हो सकती है, वहीं एक बेईमान बिना किसी डर और घबराहट के झूठ बोल सकता है.

      इसके अलावा पॉलीग्राफ टेस्ट हेल्थ फैक्टर से भी प्रभावित हो सकते हैं. उदाहरण के लिए अगर कोई दिल से जुड़ी बीमारी, हाइपरटेंशन, क्रोनिक ऑब्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (COPD) और अस्थमा जैसी बीमारी से पीड़ित है तो इसकी काफी संभावना है कि नतीजे सटीक न हो.

      बूम से बातचीत में सुप्रीम कोर्ट के वकील तनवीर अहमद मीर कहते हैं, "पॉलीग्राफ टेस्ट में लीड नहीं मिलती. इसमें एक मीटर पर संदिग्ध को बिठाया जाता है जिससे दिल की धड़कन जुड़ी होती है. किसी सवाल पर अगर आप नर्वस हो गए तो उसका मीटर तुरंत ऊपर आ जाता है. पॉलीग्राफ रिकॉर्ड करने वाला कहता है कि इस सवाल पर आरोपी घबरा रहा है लेकिन इसमें कोई रिकवरी नहीं हुई."


      कोर्ट में पॉलीग्राफ को पूर्ण स्वीकृति नहीं

      जून 2023 में एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संदिग्ध व्यक्ति का पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है, हालांकि यह किसी मामले में किसी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है.

      दरअसल संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के अनुसार, किसी अपराध में आरोपी शख्स को खुद के खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.

      इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य मामले में अपने फैसले में कहा था कि अभियुक्त की सहमति के बिना किसी भी प्रकार का लाई डिटेक्टर टेस्ट नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो स्वेच्छा से इस विकल्प का चुनाव करते हैं तो उन्हें वकील मुहैया कराया जाना चाहिए. साथ ही अभियुक्त को पुलिस और वकील के द्वारा टेस्ट के शारीरिक, भावनात्मक और कानूनी निहितार्थ समझाया जाना चाहिए.

      कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि इस टेस्ट के परिणामों को स्वीकारोक्ति नहीं माना जा सकता. हालांकि इसके जरिए अगर कोई जानकारी या सामग्री बरामद की जाती है तो उसे साक्ष्य के रूप में कोर्ट में स्वीकार किया जा सकता है. कोर्ट ने उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया था कि अगर कोई अभियुक्त परीक्षण के दौरान हत्या के हथियार के स्थान का खुलासा करता है और जांच एजेंसी को उस स्थान से हथियार बरामद होता है तो अभियुक्त का बयान सबूत के रूप में स्वीकार नहीं होगा लेकिन हथियार किया जाएगा.

      तनवीर आगे कहते हैं, "अगर कोई स्वेच्छा से पॉलीग्राफ का चुनाव करता है और उसके नतीजे दोषसिद्धि पूर्ण हैं तब भी उन्हें किसी कोर्ट या जांच एजेंसियों के समक्ष स्वीकार्य नहीं माना जाता. इसलिए रेप के केस में पॉलीग्राफ समय की बर्बादी है. रेप के केस में बेस्ट एविडेंस है- ऑन स्पॉट. अगर पीड़िता के वजाइनल या एनल स्वॉब का डीएनए आरोपी के डीएनए के साथ पॉजिटिव आ गया तो यह प्रत्यक्ष सबूत है. इसके अलावा परिस्थितिजन्य सबूत मिलते हैं जैसे आरोपी क्राइम सीन के पास मौजूद था और इसके सीसीटीवी फुटेज हैं तो यह भी प्रत्यक्ष सबूत माना जाएगा."

      सुप्रीम कोर्ट के वकील ने आगे कहा, "अगर पॉलीग्राफ में आरोपी से पूछा जाता है कि क्या आपने बलात्कार किया और उसके दिल की धड़कन तेज हो जाती है तो क्या आप इस आधार पर उसके खिलाफ आरोप तय कर सकते हैं?"

      इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के वरिष्ठ अधिवक्ता आमिर नकवी ने बूम को बताया, "कोई भी सबूत जब तक घटना के बाकी सबूतों के साथ सहयोग नहीं करता, तो इस तरह के टेस्ट का इस्तेमाल होता है. इस टेस्ट के जरिए आरोपी के जवाब को दूसरे सबूतों के साथ वेरिफाइ किया जाता है, अगर ये जवाब सबूतों के साथ मैच हो रहे हैं तो यह स्वीकार्य हो सकता है. इस कारण इस तरह के टेस्ट को पूर्ण स्वीकृति नहीं है."


      वकील बोले- जांच से भटक रही सीबीआई

      टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान कोलकाता केस के मुख्य आरोपी संजय रॉय ने सीबीआई के सवालों के झूठे और अविश्वनीय जवाब दिए. वहीं पुलिस के सामने दिए बयान में उसने अपना अपराध कबूल किया था. ऐसे में दोनों बयानों के बीच विरोधाभास हो रहा है.

      इस बारे में तनवीर अहमद बताते हैं, "पॉलीग्राफ टेस्ट का रिजल्ट निगेटिव आया तो वह आरोपी के पक्ष में जाएगा. मेरे ख्याल से पॉलीग्राफ, नार्को या ब्रेन मैपिंग जैसे लाई डिटेक्टर टेस्ट कोलकाता डॉक्टर केस में पूरी तरह से समय की बर्बादी है. इससे केवल देरी होती जाएगी और आरोपी को फायदा पहुंचेगा."

      वह आगे कहते हैं, "इस तरह केस पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, डीएनए विश्लेषण, सीसीटीवी फुटेज जैसे साक्ष्यों के साथ निरंतर सुनवाई के जरिए सुलझाए जा सकते हैं."

      वहीं लीगल एक्सपर्ट का यह भी मानना है कि केस की जांच भटक रही है. अधिवक्ता आमिर नकवी कहते हैं, "अब सीबीआई इस मामले में आरजी कर हॉस्पिटल के स्टाफ और पूर्व प्रिंसिपल का टेस्ट कर रही है. मुझे लगता है कि यह केस ट्रैक से डायवर्ट हो रहा है."

      वहीं तनवीर अहमद का मानना है, "सीबीआई को सिर्फ आरोपी पर फोकस करना चाहिए. उसके खिलाफ फुल प्रूफ सबूत इकट्ठा करना चाहिए और डे- टु-डे ट्रायल के जरिए दो महीने के अंदर दोषसिद्धि होनी चाहिए."

      लैंगिक हिंसा पर काम करने वाली अपराधशास्त्री नताशा भारद्वाज ने बूम से बातचीत में कहा, "जब भी यौन हिंसा से संबंधित किसी मामले की बात आती है, तो भारत में न्याय जल्दी नहीं मिलता. यह एक व्यवस्थित समस्या है. लंबे समय तक जांच चलती है. ऐसा नहीं है कि हमारे पास कानून की कमी है बल्कि जवाबदेही की कमी है."

      Tags

      Kolkata Rape CaseCBI probeCBI investigation
      Read Full Article
      Next Story
      Our website is made possible by displaying online advertisements to our visitors.
      Please consider supporting us by disabling your ad blocker. Please reload after ad blocker is disabled.
      X
      Or, Subscribe to receive latest news via email
      Subscribed Successfully...
      Copy HTMLHTML is copied!
      There's no data to copy!