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      हफ्ते में 90 घंटे काम: क्या कहता है भारत का कानून और हेल्थ एक्सपर्ट, जानिए

      भारत में फैक्ट्री अधिनियम 1948 के तहत अधिकतम 48 घंटे प्रति सप्ताह का काम प्रावधान है. यह एक्ट औद्योगिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य, सुरक्षा, कल्याण और कार्य-परिस्थितियों को विनियमित करता है.

      By -  Rohit Kumar
      Published -  14 Jan 2025 8:33 PM IST
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      Working 90 hours a week mental health experts say

      सितंबर 2024 में एक मल्टीनेशनल कंपनी Ernst and young (E&Y) की 26 साल की एक युवा चार्टर्ड अकाउंटेंट एना सेबेस्टियन पेरिइल की कथित रूप से काम के अधिक दबाव के कारण मौत हो गई थी. इस मामले ने पूरे देश में आक्रोश पैदा किया था और ऑफिस में ओवरड्यूटी और वर्कप्रेशर को लेकर लोगों के बीच चर्चा होनी शुरू हो गई थी.

      इसके कुछ ही दिन बाद उत्तर प्रदेश के लखनऊ से भी ऐसा ही केस सामने आया. यहां एचडीएफसी बैंक की एक महिला कर्मचारी की हार्ट अटैक के चलते ऑफिस में ही मौत हो गई थी. उनके सहकर्मियों ने काम के अत्यधिक दबाव का आरोप लगाया था.

      यूपी के ही झांसी से सितंबर 2024 में एक मामला सामने आया था, जहां टारगेट पूरा न होने के तनाव में एक फाइनेंस कंपनी के एरिया मैनेजर ने खुदकुशी कर ली थी.

      जब एक ओर कुछ समय पहले तक देश में काम के अत्यधिक बोझ के चलते लोगों के जान गंवाने का मुद्दा गर्माया हुआ था, वहीं बीते दिनों लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन के हफ्ते में 90 घंटे काम करने की सलाह ने एक नई बहस छेड़ दी.

      सुब्रह्मण्यन के बयान को लेकर कई लोगों ने उनकी आलोचना की, तो कई ने उनका समर्थन भी किया. हालांकि विवाद बढ़ते देख एलएंडटी कंपनी ने एक बयान जारी कर चेयरमैन की इस टिप्पणी पर सफाई दी.

      कंंपनी ने अपने बयान में कहा कि चेयरमैन का उद्देश्य कर्मचारियों को अधिक उत्पादकता के लिए प्रेरित करना था, ना कि उन्हें अत्यधिक काम करने के लिए बाध्य करना. बयान में कहा गया कि वे अपने कर्मचारियों के वर्क लाइफ बैलेंस के संतुलन को बनाए रखने का सम्मान करते हैं और उनके स्वास्थ्य और भलाई को प्राथमिकता देते हैं.

      तय सीमा से ज्यादा काम कई बीमारियों को जन्म

      The Social Therapist की फाउंडर और लीड साइकोलॉजिस्ट शिरोमी चतुर्वेदी कहती हैं कि शोधों के अनुसार, भारत में 70 फीसदी से अधिक कर्मचारी मीडियम से लेकर हाई लेवल के तनाव का अनुभव करते हैं. काम का ज्यादा बोझ कर्मचारियों को बर्नआउट कर देता है जो बाद में उनके डिप्रेशन और एंजाइटी का कारण बनता है.

      शिरोमी कहती हैं, "बेहतर वर्क लाइफ बैलेंस को बढ़ावा देने वाले स्पष्ट कानून और नियम बनाने की आवश्यकता है जो कर्मचारियों के कल्याण को प्राथमिकता देते हैं."

      दिल्ली एम्स में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट ऊषा कहती हैं, "किसी भी व्यक्ति पर तय सीमा से अधिक काम का बोझ कई तरह की शारीरिक और मानसिक बीमारियों को जन्म दे सकता है."

      साइकोलॉजिस्ट ऊषा देवी कहती हैं, ‘अगर काम के अधिक बोझ को ठीक तरह से मैनेज नहीं किया गया तो यह व्यक्ति को सुइसाइड तक ले जा सकता है.’

      काम के घंटों पर भारत का कानून क्या कहता है?

      भारत में फैक्ट्री अधिनियम 1948 के तहत अधिकतम 48 घंटे प्रति सप्ताह का काम प्रावधान है. इस अधिनियम में औद्योगिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य, सुरक्षा, कल्याण और कार्य-परिस्थितियों को विनियमित करने का प्रावधान है.

      नियम के मुताबिक विशेष परिस्थितियों को छोड़कर एक दिन में कर्मचारी से अधिकतम 9 घंटे और हफ्ते में अधिकतम 48 घंटे काम ही कराया जा सकता है. इसके साथ ही श्रमिकों को हफ्ते में कम से कम एक दिन अवकाश दिए जाने का स्पष्ट प्रावधान है.

      भारत में कामकाज के घंटे अंतरराष्ट्रीय मानकों के काफी करीब हैं, लेकिन कई निजी कंपनियां अक्सर इन कानूनों का पालन नहीं करतीं हैं. इंडिया टुडे की सितंबर 2024 की एक रिपोर्ट में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के आंकड़ों के हवाले से बताया गया कि औसत भारतीय कर्मचारी प्रति सप्ताह 46.7 घंटे काम करते हैं.

      दुनिया भर में क्या हैं कामकाज के घंटे

      दुनिया के अधिकतर देशों में 40 से 48 घंटे का कार्य समय निर्धारित है. कुछ प्रमुख देशों में कामकाज के घंटे देखें तो अमेरिका में 40, ब्रिटेन में 48, ब्राजील में 39, फ्रांस में 36, भारत में 48, ऑस्ट्रेलिया में 38, डेनमार्क में 37, नीदरलैंड में 29, नॉर्वे में 31 और चीन में लगभग 46 घंटे प्रति सप्ताह लोग काम करते हैं.

      वहीं इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) के मुताबिक, दुनिया में प्रति सप्ताह सबसे ज्यादा काम कराने वाले देशों में भूटान सबसे टॉप पर है, जहां 54.4 प्रति घंटे प्रति सफ्ताह है. इसके अलावा यूएई में 50.9 घंटे, लिसोटो में 50.4 घंटे, कांगो में 48.6 घंटे और कतर में 48 घंटे है. भारत विश्व में सर्वाधिक काम करने वाले देशों में 13वें स्थान पर है. एक औसत भारतीय कर्मचारी प्रति सप्ताह 46.7 घंटे काम करता है.

      कैसे तय हुए दुनिया में काम के घंटे

      औद्योगिक क्रांति के दौरान श्रमिक अत्यधिक लंबे घंटे और अस्वस्थ परिस्थितियों में काम करते थे. अत्यधिक लंबे काम के घंटे और श्रमिकों के अधिकारों की कमी ने श्रमिक आंदोलनों को जन्म दिया. इन आंदोलनों और संघर्षों के परिणामस्वरूप, श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाए गए.

      साल 1919 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की स्थापना की गई. इसी साल आईएलओ द्वारा एक महत्वपूर्ण एग्रीमेंट Hours of Work (Industry) Convention, 1919 (C001) भी किया गया. इसके मुताबिक हफ्ते भर में 48 घंटा काम करने का मानक निर्धारित किया गया. साल 1935 तक पश्चिम के कई देशों ने एक हफ्ते में लगभग 40 घंटे काम करने का नियम तय किया.

      कई उद्योगपति काम के घंटे बढ़ाने की कर चुके हैं वकालत

      कुछ समय पहले नारायण मूर्ति ने भी अपने एक बयान में देश के विकास के लिए युवाओं से सफ्ताह में 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी. इसी तरह इलेक्ट्रिक बाइक कंपनी ओला के सीईओ भाविश अग्रवाल का भी एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह कहते नजर आए कि शनिवार और रविवार की छुट्टी भारतीय परंपरा नहीं है. हमारे देश में पहले शनिवार और रविवार की छुट्टी नहीं होती थी. यह पश्चिमी सभ्यता का हिस्सा है.

      L&T चेयरमैन के बयान पर किसने क्या कहा?

      एसएन सुब्रह्मण्यन के इस बयान की काफी आलोचना हुई. उद्योगपति हर्ष गोयनका ने भी सुब्रह्मण्यन के इस बयान को लेकर एक्स पर लिखा, "एक हफ्ते में 90 घंटे काम? आखिर दुनिया के किस देश में लोग एक हफ्ते में सबसे ज्यादा काम करते हैं?” उद्योगपति हर्ष गोयनका के बाद देविना मेहरा, राजीव बजाज ने भी सुब्रमण्यन के इस बयान पर असहमति जताई.

      प्रसिद्ध बैडमिंटन खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा ने कहा कि इतने शिक्षित और बड़े संगठनों के ऊंचे पदों पर बैठे लोग मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और इस तरह के स्त्री-द्वेषी बयान भी दे रहे हैं. फिल्म एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण ने इंस्टाग्राम पर एक स्टोरी शेयर करके लिखा कि ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के ऐसे बयान चौंकाने वाले हैं.

      काम की गुणवत्ता मायने रखनी चाहिए: आनंद महिंद्रा

      महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने इस बहस पर कहा कि कि काम की गुणवत्ता मायने रखनी है ना कि सिर्फ काम के घंटे. उन्होंने कहा, "यह बहस गलत दिशा में जा रही है. यह काम की मात्रा के बारे में है, जबकि यह काम की गुणवत्ता के बारे में होनी चाहिए." उन्होंने जोर देकर कहा कि चाहे आप 10 घंटे ही काम क्यों न करें, महत्वपूर्ण है कि आपका आउटपुट क्या है.

      एसएन सुब्रह्मण्यन ने क्या कहा था

      लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने बीते दिनों एक ऑनलाइन मीटिंग के दौरान अपने कर्मचारियों से कहा था, "मुझे खेद है कि मैं आपसे रविवार को काम नहीं करवा पा रहा हूं. अगर मैं आपको रविवार को भी काम करवा पाऊं, तो मुझे ज्यादा खुशी होगी, क्योंकि मैं भी रविवार को काम करता हूं."

      सुब्रह्मण्यन ने आगे यह तक कह दिया, “आप घर पर बैठकर क्या करते हैं? आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक निहार सकते हैं? आपकी पत्नी आपको कितनी देर तक निहार सकती है? चलो, ऑफिस जाओ और काम शुरू करो.”

      उनके इस बयान पर हैदराबाद यूनिवर्सिटी में शोधार्थी संध्या चौरसिया कहती हैं, "पति घर पर बैठकर कब तक पत्नी को कब देखे या पत्नी घर बैठकर कब तक पति को देखे. यह कहना व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों रूप से बेहद निंदनीय है."

      संध्या चौरसिया कहती हैं, "यह किसी का व्यक्तिगत चुनाव है कि वह अपने निजी समय में किसी व्यक्ति को देखे, टीवी देखे चाहे दीवार को देखे! इस तरह के बयान में यही सोच शामिल है कि जीवनसाथी खासकर स्त्रियां ध्यान भटकाने का कारण होती हैं." संध्या ने आगे कहा कि सुब्रमण्यम का यह बयान वर्क स्पेस में एम्प्लॉई के एक्सप्लोइटेशन को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्त्री-द्वेषी भी है.

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      mental health
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